Wednesday 31 August 2016

बिछोह

मैं ही तुमसे मिलना चाहूं
तुम्हें नहीं क्या उत्कंठा है?
बूंद नहीं सागर भरती तो
स्वयं बूंद का अस्तित्व ही क्या है?
तुम्हें नहीं आतुरता मेरी
मैं ही क्यों संघर्ष करूं फिर!
शक्तिमान तुम मैं अबला हूं
मिलन प्रयास तदपि मेरा है.
देव खींच लो बाँह पकड़ कर
ताकि निर्भय मैं हो जाऊं
भक्त सदा भगवान के प्रिय
हृदय निवास स्थान तेरा है.
जब हो साथ सदा मेरे तुम
सिर्फ भय क्या और चिंता कैसी?
दायित्वों की पूर्ति हेतु हम
कार्य सकल भव का तेरा है
संचालन तो प्रकृति सुलभ है
व्यर्थ करें चिंता हम जैसे,
होना है वैसे ही होता
क्यों नर चिंता ने घेरा है.
तुम मेरे मैं सदा तुम्हारी
दासी सखी या भक्तिन समझो
अंश तुम्हारा ही मुझ में है
तुम से ही तो प्राण मिला है.
ममता की फुलवारी सींची
फूल लगाए रंग-बिरंगे
कब समेट लो अपनी लीला
यह सब तो अधिकार तेरा है.
मुझको अचरज तब होता है
जब प्रिय का बिछोह होता है
तुम्हें नहीं क्या दुख होता तब
जब कृतित्व तू समेटता है.

निर्दोष त्यागी

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