Friday 2 September 2016

गुरु महिमा

गुरु करे अज्ञान दूर, गुरु ज्ञान सिखाए रे|
शिक्षा सार है जीवन का, वह ही बतलाए रे|
आप उतारें जीवन में, फिर देता है शिक्षा,
करें आंकलन क्या है सीखा, लेकर परीक्षा
दिया दंड यदि, उसमें भी है उन्नति की इच्छा
उन्नति या फिर मिले सफलता वह हर्षाए रे||
खेल-खेल में, बात बात में, बांटे सबको ज्ञान,
अपना हो या कोई पराया सबको दे सम्मान,
वह कहता अपने शिष्यों से करना सबका मान,
जब भी हो संपर्क गुरु से मिल अठलाए रे||
प्रथम गुरु माँ शीश झुकाऊँ, प्रभु सदा आभारी,
जिस ने बोल दिए जिव्या को, गुंजाई किलकारी,
कभी डांट कर, कभी प्यार से, हम में सीख उतारी,
रोने और हंसने पर अपना साथ निभाए रे||
शिक्षक का निस्वार्थ प्रेम है, नहीं स्वार्थ का नाता,
इसीलिए स्थान गुरु का सबसे ऊपर आता,
गुरु स्वार्थ से ऊपर है और उस से आगे माता,
छात्र हुए जब सफल गुरु का मान बढ़ाएं रे||
गुरु करे अज्ञान दूर, गुरु ज्ञान सिखाए रे||

निर्दोष त्यागी